Madhu varma

Add To collaction

लेखनी कविता -ले चल वहाँ भुलावा देकर- जयशंकर प्रसाद

ले चल वहाँ भुलावा देकर- जयशंकर प्रसाद


जयशंकर प्रसाद »

ले चल वहाँ भुलावा देकर
मेरे नाविक ! धीरे-धीरे ।
 जिस निर्जन में सागर लहरी,
 अम्बर के कानों में गहरी,
 निश्छल प्रेम-कथा कहती हो-
 तज कोलाहल की अवनी रे ।
 जहाँ साँझ-सी जीवन-छाया,
 ढीली अपनी कोमल काया,
 नील नयन से ढुलकाती हो-
 ताराओं की पाँति घनी रे ।

 जिस गम्भीर मधुर छाया में,
 विश्व चित्र-पट चल माया में,
 विभुता विभु-सी पड़े दिखाई-
 दुख-सुख बाली सत्य बनी रे ।
 श्रम-विश्राम क्षितिज-वेला से
 जहाँ सृजन करते मेला से,
 अमर जागरण उषा नयन से-
 बिखराती हो ज्योति घनी रे !

   0
0 Comments